भारत – एक राष्ट्र
टुकड़े टुकड़े गैंग के नेता ने लोकतंत्र के मंदिर में कहा कि संविधान के सन्दर्भ से भारत राष्ट्र नहीं है, राज्यों का संघ है. संविधान में से ‘टुकड़े टुकड़े षड्यंत्र’ को दिग्भ्रमित करनेवाला ‘आधार’ देने के लिए अर्धसत्य की आड़ में सरासर असत्य बोला गया.
संविधान के आमुख में पहले ही पन्ने पर राष्ट्र का और राष्ट्र की एकता और अखंडितता का प्रमुखता से उल्लेख है, किन्तु इस कुटिल ‘नेता’ ने वह सन्दर्भ को सुविधापूर्वक टाल दिया.
इसी संविधान में भारत की राष्ट्रीयत्व की अवधारणा के कई आयाम देखे जा सकते हैं – जैसे
एक संप्रभुता,
एक नागरिकत्व,
एक संविधान,
एक ध्वज,
एक राष्ट्र गीत,
एक राष्ट्र गान,
एक राष्ट्राध्यक्ष – एक प्रधानमंत्री,
भारतीय अधिकारी सेवाएं – प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा – विदेश सेवा, वन सेवा, रेलवे सेवा इत्यादि,
केंद्रीय मंत्री परिषद जिसे सारे राष्ट्रीय अधिकार मिले हुए हैं,
एकछत्र सुग्रथित न्यायपालिका,
केंद्रीय विधायिका जिसको सारे राष्ट्र्रीय विधायी अधिकार मिले हुए हैं इत्यादि इत्यादि।
भारत के लोग सबकुछ समझते हैं.
संविधान के उपरांत कितने ही आयाम हैं जो स्वयंस्पष्ट रूप से भारत के एक राष्ट्र होने के ज्वलंत प्रमाण हैं – जैसे
भारत ऐतिहासिक रूप से एक प्राचीन राष्ट्र है,
लोग वेदों को – उपनिषदों को – पुराणों को मानते हैं,
वेदों में राष्ट्र का उल्लेख हों ऐसे कई मंत्र हैं,
सांस्कृतिक एकता के तो कई प्रमाण हैं किन्तु राजकीय एकता के भी कई प्रमाण हैं,
रामायण में चक्रवर्ती राज्य होने के प्रमाण हैं,
महाभारत में लिखा है कि सांस्कृतिक रूप से एक भारत राजकीय रूप से भी एक रहा है –
महाभारत काल के पहले के ६४ ऐसे चक्रवर्ती राजा हुए हैं जिनके नाम महाभारत में हैं.
सभी भारतीय मत पंथों के आचार्यों का पूरे भारत में भ्रमण करना सर्व-विदित है,
चार धाम – बारह ज्योतिर्लिंग – ५१ शक्ति पीठ – चार शांकर पीठ – ८४ वैष्णव बैठकें – सारे राज्यों में जैनियों के महत्त्वपूर्ण देरासरों का – तीर्थों का होना, गुजरात से लेकर महाराष्ट्र – बिहार तक महत्त्वपूर्ण गुरुद्वारों का होना,
सारे राज्यों में एक ही सनातन धर्म और संस्कृति को माननेवाले और सारे भारतीय मत पंथों के माननेवाले लोगों का होना –
एक भाषा – संस्कृत का जननी भाषा के रूप में होना,
यह सब दर्शाता है कि विविध राज्यों का – विविध भाषाओं – वेशभूषा – खानपान – रहनसहन का पनपना भारत की लचीली सनातन संस्कृति का परिणाम है.
पिछले शतक में राज्यों के संघ के रूप में भारत का एक राष्ट्र बनना यह तो कालांतर में राष्ट्रबोध की कमी में से पनपे अंतर्विरोधों को मिटाते हुए और परतंत्रता से मुक्ति पाते हुए पुन: एकत्र आना मात्र है.
इससे यह अर्थ नहीं निकलता कि भारत एक राष्ट्र नहीं था या एक राष्ट्र नहीं है.
आगे के दिनों में भारत समर्थ राष्ट्र के रूप में उभरेगा और विश्व शांति स्थापित करते हुए विश्वगुरु की भूमिका निभाएगा जो कि उसका सहस्त्रों वर्षों से दायित्व है.
एकता के सूत्रों को द्रढ़ करना चाहिए उसकी जगह टुकड़े टुकड़े टोली विविधता को विकृत रूपसे दर्शाते हुए देश को तोड़ने का कुत्सित प्रयास कर रही हैं.
सावधान, भारत !!!
भारत माता की जय!!!
(लेखन – विरेन शामलदास दोशी)
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